जीव विज्ञान में पंच जगत की अवधारणा

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अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है । जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत(Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग(Order), वंश(Genus) और जाति(Species) के पदानुक्रम में किया जाता है । इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है । अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है ।

पंच जगत अवधारणा

वर्गीकरण विज्ञान का विकास

सर्वप्रथम अरस्तू ने जीव जगत को दो समूहों अर्थात् वनस्पति व जंतु जगत में बाँटा था । उसके बाद कैरोलस लीनियस ने अपनी पुस्तक ‘Systema Naturae’ में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया ।

कैरेलस लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है , क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है ।

1969 ई. में परंपरागत द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली का स्थान व्हिटकर (Whittaker) द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत प्रणाली ने ले लिया । व्हिटकर ने सभी जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdoms) में वर्गीकृत किया:

1. मोनेरा जगत (KingdomMonera): इस जगत में प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु (Bacteria), सायनोबैक्टीरिया और आर्कीबैक्टीरिया शामिल हैं ।

2. प्रोटिस्टा जगत (Kingdom Protista): इस जगत में एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव शामिल हैं । पादप व जंतु के बीच स्थित युग्लीना इसी जगत में शामिल है ।

3. कवक जगत (Kingdom Fungi) : इसमें परजीवी तथा मृत पदार्थों पर भोजन के लिए निर्भर जीव शामिल है । इनकी कोशिका भित्ति काईटिन की बनी होती है ।

4. पादप जगत (Kingdom Plantae): इस जगत में शैवाल व बहुकोशिकीय हरे पौधे शामिल हैं ।

5. जंतु जगत (Kingdom Animal): इसमें सभी बहुकोशिकीय जंतु शामिल होते हैं । इसे ‘मेटाजोआ’ भी कहा जाता है ।

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